कानू के दोहे |
1 |
कलिक पर सफ़ेद तिनका, कलिक और चमकाए
सफ़ेद पे कलिक तिनका, कभी न मिटने पाये |
2 |
कंचन काया किस काम की, प्रिय जे मन न भाये
औरन लख खुशियाँ देइ , पर चैन तनिक न पाये |
3 |
प्रिय सँगै लाखों पल , पलछिन में गुज़रे भाई
जुदाई का इक पल गुज़रै, देकर लख कठनाई |
4 |
इक बार भी जोउ कोई, बचावे तोहैं गिरने से
चिराग लेकर भी ना मिले, ऐसा व्यक्ति ढूंढने से |
5 |
बहूत लोग मिलेंगे जो , करेंगे तेरी खुशामत
सही बात बताने वाले , नहीं करेंगे बनावट |
6 |
उनको कभी न भूलना, जो साथ दे कब तेरा
उनको कभी ना छोड़ना, जो साथ न छोड़े तेरा |
7 |
कुछ लोग ऐसे मिलेंगे, जो तुझे सहेंगे नहीं
उनसे भी अच्छा चल फिर बुरे रहेंगे नहीं |
8 |
गीतों में सुरों में यारा ,ढूँढू खुशियों का भंडार
जग में कौन है ऐसा , जो ख़ुशी से भरे संसार |
9 |
बांधकर दिलको इस धागे से, जकड लिया तूने ऐसे
पानी को पकडे प्यासा कोई, रोटी को बूखा जैसे |
10 |
आँखों से अश्रू बहते , रहते है हर वक़्त
देखके इस दुनिया के, चलन इतने सक्त |
11 |
मात पिता की आज्ञा का , कर हरदम पालन
उनकी अपार कृपा से , पतझर भी बनजाये सावन |
12 |
जिसने तुझको रह दिखाई , और रौशन किया संसार
उसको कुछ और न देना, बस व्यक्त करना आभार |
13 |
मन में उस तस्वीर को , रखना हरदम जीवित
जिसने तेरे मन को हरदम रखना चाहा पुलकित |
14 |
पंखों से उड़ान होती नहीं, जितना मन उड़ा ले जाई
है यकीन इसका नहीं, तो खुद ही आज़मा ले भाई |
15 |
चंचल जितना मन होता है, उत चंचलता नहीं किसी में
जो यह चंचलता काबू करे, रब को बस ढूंढ उसी में |
16 |
रंग लाल नीला ना पीला , रंग एक है ईश्वरीय रंग
लग गया यह रंग तो फिर, घूम लै ई स्वर्गीय उमंग |
17 |
पल पल ईश्वर कउ नाउ , चढ़ा है ज़ुबाँ पे होई
झूम उठै मस्ती मैं पाउ , बस ख़ुशी कै गीत गाई |
18 |
कपटी शातिर बेईमान , काले मन का रखनेवाला
यह बात को सहिमान , तेरा कुछ नहीं चलनेवाला |
19 |
दूसरों के जीवन में राही ,गंद कचीरा भरनेवाले
तेरा कुछ न होगी जान, तंग पसीरा करनेवाले |
20 |
नज़र लग न जाये कहीं, कोई हसते खेलते परिवार को
रब से यही मांगू दुवा, कर सार सांभर हरवार को |
21 |
जब जीवन में तकलीफ का , सर पे गिर जाये पहाड़
बुज़ुर्गों की सलहा लेकर , हलका कर अपना ई भार |
22 |
बुज़ुर है तो विश्वास है, कुछ भी गलत हो सकता नहीं
घर में एक मिठास है , कुछ भी फीका हो सकता नहीं |
23 |
जिस घर में बुज़ुर्ग नहीं, बहुत संभल के चलना जी
कब हो जाये झगड़ा घर में, न जाने क्या होना जी |
24 |
बुज़ुर्ग नहीं तो वोह स्वर्ग, कब नरक में बदल जाये
पल में खुशियों पर भैया , गम का साया मंडराएं |
25 |
बुज़ुर्ग है पर उनका कहना, मानने से करे इंकार
बस समझलो नाश होना, उस घर का है पक हार |
26 |
बुज़ुर्ग जो कहते है, उनके जीवन का है सार
उनके बोल सच है , कर नहीं को सके इंकार |
27 |
बुज़ुर्गो की बात तुझे , दलदल से भी निकाल देगी
एक बार मान के देख , तेरी तो कमाल हैगी |
28 |
जो न माने बुज़ुर्ग की, फंस जायेगा दलदल
निकलना चाहे पर और ही, फसता जाए पलपल |
29 |
प्यासा पानी कहीं से भी , भर भर कर पी लेगा
बूखा पता खींच कर भी, खा कह कर जी लेगा |
30 |
जब न खाना चाहिए किसको, चाहे करलो कुछ भी
जोर जबरन करके भी तुम, खिला न सकोगे कुछ भी |
31 |
जब देह छोड़नी है होती, तब खाना पीना छूटता है
पता भी नहीं चलता कब कैसे, यह सब हो पड़ता है |
32 |
जब कोई मर जाता है, तो दुःख बड़ा ही होता है
दिल में यादें उमर कर, दिल यह कितना रोता है |
33 |
जानते है सब इस बात को, मरना तो सबको है
पर जब होता है उनके साथ, होता दुःख सबको है |
34 |
चंचल मन फिरता रहता , किसका नहीं वोह सुनता है
अपनी मनमानी करके, अपने ही सपने बुनता है |
35 |
इज़्ज़त देना सब बहनो को, चाहे और कुछ देना नहीं
चाहते है वोह इज़्ज़त से जीना, हक़ यह लेना नहीं |
36 |
औरत की इज़्ज़त गहना है, सबसे अनमोल याद रखो
उसको कभी चुराना नहीं, वह गहना आबाद रखो |
37 |
औरत कुछ भी सह सकती, पर अपनी इज़्ज़त पर दाग नहीं
मर जायेगी जीते जी वोह, गर इज़्ज़त उसके भाग नहीं |
38 |
और नहीं देख सकती वोह, अपना उजरता सुहाग
दुहाई ऐसी निकलेगी मन से, बुझ न पायेगी आग |
39 |
उसके बच्चे को हानि पहुचाये , ऐसा दिन न आये कभी
मिटा देगी साड़ी दुनिया वोह, तब मर जायेंगे सभी |
40 |
इज़्ज़त आबरू औरत के, उससे खेलना कभी नहीं
आग जो उससे निकलेगी , बच सकेगा कोई नहीं |
41 |
बुज़ुर्गो की जो सुनता नहीं, उसे खाख छाननी पड़ती है
आसमान भीं नहीं होता उसका, न उसकी होती धरती है |
42 |
बुज़ुर्ग जो कहे, सुनले, मानके चल उस राह पर
बच जायेगा भटकने से , इस दुनिया में दर दर |
43 |
दर बदर की ठोकरें खायेगा , तूने गर बड़ो का नहीं सुना
जानले राही जानले उस वक़्त , तूने खुदको ही नही बुना |
44 |
मर जाना पर निभाना हरदम अपने धरम ईमान को
मिटे चाहे अहम तेरा , पर बरक़रार रखना जुबान को |
45 |
लगाम लगा घोड़े को, पर फिर भी कुछ न पाया हो
जो न लगाम लगा सके, अपनी कांची सी जुबां को |
46 |
रोक सके जो जिभीया को अपने, वोह रोक सकता ब्रमांड को
चाहे कोई भी झगड़ा चलरहा , रोक सकता वो उस विवाद को |
47 |
चुप कर के बैठना, एक कला है जो मुश्किल है
जिसने सीख ली यह कला, उसका जीवन महफ़िल है |
48 |
मंज़िल पा सकता है वोह, जो मू बंद करके काम करे
वोह बैठा रहेगा वहीं , जो मू खोल अपना नाम करे |