Wednesday, 2 July 2014

कानू के दोहे


कानू के दोहे
1 कलिक पर सफ़ेद तिनका, कलिक और चमकाए
सफ़ेद पे कलिक तिनका, कभी न मिटने पाये
2 कंचन काया किस काम की, प्रिय जे मन न भाये
औरन लख खुशियाँ देइ , पर चैन तनिक न पाये
3 प्रिय सँगै लाखों पल , पलछिन में गुज़रे भाई
जुदाई का इक पल गुज़रै, देकर लख कठनाई
4 इक बार भी जोउ कोई, बचावे तोहैं गिरने से
चिराग लेकर भी ना मिले, ऐसा व्यक्ति ढूंढने से
5 बहूत लोग मिलेंगे जो , करेंगे तेरी खुशामत
सही बात बताने वाले , नहीं करेंगे बनावट
6 उनको कभी न भूलना, जो साथ दे कब तेरा
उनको कभी ना छोड़ना, जो साथ न छोड़े तेरा
7 कुछ लोग ऐसे मिलेंगे, जो तुझे सहेंगे नहीं
उनसे भी अच्छा चल फिर बुरे रहेंगे नहीं
8 गीतों में सुरों में यारा ,ढूँढू खुशियों का भंडार
जग में कौन है ऐसा , जो ख़ुशी से भरे संसार
9 बांधकर दिलको इस धागे से, जकड लिया तूने ऐसे
पानी को पकडे प्यासा कोई, रोटी को बूखा जैसे
10 आँखों से अश्रू बहते , रहते है हर वक़्त
देखके इस दुनिया के, चलन इतने सक्त
11 मात पिता की आज्ञा का , कर हरदम पालन
उनकी अपार कृपा से , पतझर भी बनजाये सावन
12 जिसने तुझको रह दिखाई , और रौशन किया संसार
उसको कुछ और न देना, बस व्यक्त करना आभार
13 मन में उस तस्वीर को , रखना हरदम जीवित
जिसने तेरे मन को हरदम रखना चाहा पुलकित
14 पंखों से उड़ान होती नहीं, जितना मन उड़ा ले जाई
है यकीन इसका नहीं, तो खुद ही आज़मा ले भाई
15 चंचल जितना मन होता है, उत चंचलता नहीं किसी में
जो यह चंचलता काबू करे, रब को बस ढूंढ उसी में
16 रंग लाल नीला ना पीला , रंग एक है ईश्वरीय रंग
लग गया यह रंग तो फिर, घूम लै ई स्वर्गीय उमंग
17 पल पल ईश्वर कउ नाउ , चढ़ा है ज़ुबाँ पे होई
झूम उठै मस्ती मैं पाउ , बस ख़ुशी कै गीत गाई
18 कपटी शातिर बेईमान , काले मन का रखनेवाला
यह बात को सहिमान , तेरा कुछ नहीं चलनेवाला
19 दूसरों के जीवन में राही ,गंद कचीरा भरनेवाले
तेरा कुछ न होगी जान, तंग पसीरा करनेवाले
20 नज़र लग न जाये कहीं, कोई हसते खेलते परिवार को
रब से यही मांगू दुवा, कर सार सांभर हरवार को
21 जब जीवन में तकलीफ का , सर पे गिर जाये पहाड़
बुज़ुर्गों की सलहा लेकर , हलका कर अपना ई भार
22 बुज़ुर है तो विश्वास है, कुछ भी गलत हो सकता नहीं
घर में एक मिठास है , कुछ भी फीका हो सकता नहीं
23 जिस घर में बुज़ुर्ग नहीं, बहुत संभल के चलना जी
कब हो जाये झगड़ा घर में, न जाने क्या होना जी
24 बुज़ुर्ग नहीं तो वोह स्वर्ग, कब नरक में बदल जाये
पल में खुशियों पर भैया , गम का साया मंडराएं
25 बुज़ुर्ग है पर उनका कहना, मानने से करे इंकार
बस समझलो नाश होना, उस घर का है पक हार
26 बुज़ुर्ग जो कहते है, उनके जीवन का है सार
उनके बोल सच है , कर नहीं को सके इंकार
27 बुज़ुर्गो की बात तुझे , दलदल से भी निकाल देगी
एक बार मान के देख , तेरी तो कमाल हैगी
28 जो न माने बुज़ुर्ग की, फंस जायेगा दलदल
निकलना चाहे पर और ही, फसता जाए पलपल
29 प्यासा पानी कहीं से भी , भर भर कर पी लेगा
बूखा पता खींच कर भी, खा कह कर जी लेगा
30 जब न खाना चाहिए किसको, चाहे करलो कुछ भी
जोर जबरन करके भी तुम, खिला न सकोगे कुछ भी
31 जब देह छोड़नी है होती, तब खाना पीना छूटता है
पता भी नहीं चलता कब कैसे, यह सब हो पड़ता है
32 जब कोई मर जाता है, तो दुःख बड़ा ही होता है
दिल में यादें उमर कर, दिल यह कितना रोता है
33 जानते है सब इस बात को, मरना तो सबको है
पर जब होता है उनके साथ, होता दुःख सबको है
34 चंचल मन फिरता रहता , किसका नहीं वोह सुनता है
अपनी मनमानी करके, अपने ही सपने बुनता है
35 इज़्ज़त देना सब बहनो को, चाहे और कुछ देना नहीं
चाहते है वोह इज़्ज़त से जीना, हक़ यह लेना नहीं
36 औरत की इज़्ज़त गहना है, सबसे अनमोल याद रखो
उसको कभी चुराना नहीं, वह गहना आबाद रखो
37 औरत कुछ भी सह सकती, पर अपनी इज़्ज़त पर दाग नहीं
मर जायेगी जीते जी वोह, गर इज़्ज़त उसके भाग नहीं
38 और नहीं देख सकती वोह, अपना उजरता सुहाग
दुहाई ऐसी निकलेगी मन से, बुझ न पायेगी आग
39 उसके बच्चे को हानि पहुचाये , ऐसा दिन न आये कभी
मिटा देगी साड़ी दुनिया वोह, तब मर जायेंगे सभी
40 इज़्ज़त आबरू औरत के, उससे खेलना कभी नहीं
आग जो उससे निकलेगी , बच सकेगा कोई नहीं
41 बुज़ुर्गो की जो सुनता नहीं, उसे खाख छाननी पड़ती है
आसमान भीं नहीं होता उसका, न उसकी होती धरती है
42 बुज़ुर्ग जो कहे, सुनले, मानके चल उस राह पर
बच जायेगा भटकने से , इस दुनिया में दर दर
43 दर बदर की ठोकरें खायेगा , तूने गर बड़ो का नहीं सुना
जानले राही जानले उस वक़्त , तूने खुदको ही नही बुना
44 मर जाना पर निभाना हरदम अपने धरम ईमान को
मिटे चाहे अहम तेरा , पर बरक़रार रखना जुबान को
45 लगाम लगा घोड़े को, पर फिर भी कुछ न पाया हो
जो न लगाम लगा सके, अपनी कांची सी जुबां को
46 रोक सके जो जिभीया को अपने, वोह रोक सकता ब्रमांड को
चाहे कोई भी झगड़ा चलरहा , रोक सकता वो उस विवाद को
47 चुप कर के बैठना, एक कला है जो मुश्किल है
जिसने सीख ली यह कला, उसका जीवन महफ़िल है
48 मंज़िल पा सकता है वोह, जो मू बंद करके काम करे
वोह बैठा रहेगा वहीं , जो मू खोल अपना नाम करे

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